आज मेरा मन बहुत विचिलित है
समझ नहीं आता है ये मन चाहता क्या है
कभी कभी खुद की फिलिंग ही नहीं समझ पाता है
मुझको कुछ समझ ही नहीं आता
की मन चाहता क्या है
आंख बंद करने पर एक ही चेहरा दिखता है
ना जाने कहां है वो
ये मन उस के लिए विचिलीत हो जाता है।
क्या करू हाय कुछ कुछ होता है
नशीली सी आखे उस की
उस में खो जाने का मन करता है।
देख उस को दिल थर थर कापने लगता है
ना जाने वो कहा है अब
जिस के लिए मन विचीलित होता है
और किसी से बात करने को दिल भी नहीं करता है
मन शान्त करने की कोशिश करती हूं
एकान्त की तलाश में रहती हू।
कुछ समझ नहीं आता क्या सही है क्या गलत है
सोचती रहती हूं हर वक़्त उस के बारे में।
कभी तो अपने पास होता
जो मुझको समझता हर वक़्त
जो मेरे मन को पढ़ता
और मेरे दिल की सुनता वो
लेकिन अफ़सोस वो नहीं होता हमारे दिल के पास
में कूद ही अपने मन से लडती रहती हूं।
बस इस ही दौर से गुज़र रही हूं में
पता नहीं ये मन क्या चाहता है
वीचिलित हुआ फिरता है।
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